Home व्यक्तित्व एवं इतिहास सरदार वल्लभभाई को लौह पुरुष” और “आधुनिक भारत के शिल्पकार”  क्यों कहा जाता है ?

सरदार वल्लभभाई को लौह पुरुष” और “आधुनिक भारत के शिल्पकार”  क्यों कहा जाता है ?

by Current Good News
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सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन परिचय

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक किसान थे और माता लाडबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। बचपन से ही वल्लभभाई में अनुशासन, मेहनत और दृढ़ता जैसे गुण दिखाई देते थे।
वे स्वाभाविक रूप से साहसी थे और किसी भी कठिन परिस्थिति में शांत और धैर्यवान बने रहते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात में पूरी की और आगे चलकर कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। वहां उन्होंने कड़ी मेहनत से बैरिस्टर की उपाधि हासिल की और भारत लौटकर अपनी वकालत शुरू की।

स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश:

वल्लभभाई पटेल का राजनीति में प्रवेश तब हुआ जब वे महात्मा गांधी से प्रेरित हुए। गांधीजी के आदर्शों और अहिंसात्मक संघर्ष से प्रभावित होकर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
उनकी सबसे पहली बड़ी सफलता खेड़ा सत्याग्रह (1918) में मिली, जहाँ उन्होंने किसानों का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार को कर में छूट देने के लिए मजबूर किया। इसके बाद उन्होंने बारडोली सत्याग्रह (1928) का नेतृत्व किया, जहाँ किसानों ने बढ़े हुए करों का विरोध किया। उनकी सफलता के बाद उन्हें “सरदार” की उपाधि दी गई।

स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका:

सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): उन्होंने लोगों को नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

भारत छोड़ो आंदोलन (1942): सरदार पटेल ने सक्रिय रूप से आंदोलन का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई।

उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उनके हौसले कभी नहीं टूटे।

आज़ादी के बाद का योगदान:

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी 560 से अधिक रियासतों को एकीकृत करना। सरदार पटेल को इस कार्य का जिम्मा सौंपा गया। उन्होंने अपनी कूटनीति, समझदारी और दृढ़ निश्चय से सभी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल किया।
हैदराबाद, जूनागढ़, और कश्मीर जैसे विवादित राज्यों को भी भारत का हिस्सा बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। इसके लिए उन्हें “भारत का बिस्मार्क” भी कहा जाता है।

स्टैचू ऑफ यूनिटी, गुजरात

विचार और दृष्टिकोण:

सरदार पटेल का मानना था कि एक मजबूत और एकजुट भारत ही विश्व में अपनी पहचान बना सकता है। वे दृढ़ निर्णय लेने के लिए प्रसिद्ध थे और हमेशा राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) को संगठित और मजबूत किया, जो आज भी भारत के प्रशासनिक ढांचे की रीढ़ हैं।

विरासत: सरदार पटेल की स्मृति में 2018 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का अनावरण किया गया, जो गुजरात के केवड़िया में स्थित है। यह मूर्ति 182 मीटर ऊँची है और विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।
हर साल 31 अक्टूबर को उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उपसंहार:

सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन सादगी, अनुशासन, और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में बल्कि स्वतंत्र भारत को सशक्त और एकीकृत बनाने में भी अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके विचार और कार्य हमेशा भारतीय जनता को प्रेरित करते रहेंगे।
उन्हें सही मायनों में “लौह पुरुष” और “आधुनिक भारत के शिल्पकार” कहा जाता है।

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