भगवान श्री कृष्ण हिन्दू धर्म के महानतम देवताओं में से एक हैं, और उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। उनका जीवन, उनके उपदेश, और उनके कर्मों ने भारतीय संस्कृति, दर्शन, और धर्म पर गहरा प्रभाव डाला है। कृष्ण की पूजा और उनके जीवन के बारे में बहुत सारी कथाएँ, भक्ति गीत, ग्रंथ और महाकाव्य जैसे महाभारत और भागवद गीता में वर्णित हैं, जो आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।
श्री कृष्ण का जीवन परिचय

- जन्म: भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वारका के पास मथुरा में हुआ था, जो आज के उत्तर प्रदेश राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। उनका जन्म भगवान विष्णु के अवतार के रूप में हुआ था और उन्हें यदु वंश (यदुकुल) के राजकुमार के रूप में जाना जाता है।
- जन्म तिथि: श्री कृष्ण का जन्म श्रावण मास की आठवीं तिथि को मुगुरवेल (जो कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है) हुआ था।
- माता-पिता: श्री कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनका जन्म मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ था। कंस ने उन्हें मारने के लिए कई उपाय किए थे, लेकिन कृष्ण को बचाकर वसुदेव ने उन्हें गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के पास भेज दिया, जहां उनका पालन-पोषण हुआ।
भगवान श्री कृष्ण के प्रमुख कार्य और गुण

- बाल्यकाल में लीलाएं:
- भगवान श्री कृष्ण का बाल्यकाल मथुरा और गोकुल में बहुत प्रसिद्ध है। वह गोवर्धन पर्वत उठाना, नन्द बाबा की गायों को बचाना, माखन चोर के रूप में माखन चुराना, और कालीया नाग को पराजित करने जैसी कई अद्भुत लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
- उन्होंने भूतिया वृन्दावन में रहते हुए कई राक्षसों का वध किया, जैसे पूतना, अर्कासुर, और तृणावर्त।
- महाभारत और अर्जुन के साथ संवाद:
- भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कार्य महाभारत के युद्ध के दौरान हुआ। अर्जुन के महान और भीषण युद्ध के समय, जब वह युद्ध करने से मना कर रहे थे, तो कृष्ण ने भागवद गीता का उपदेश दिया।
- गीता के उपदेश में कृष्ण ने जीवन के उद्देश्य, धर्म (धर्म) और कर्म (कर्म) के महत्व को बताया। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि उसे अपने कर्म को बिना फल की चिंता किए करना चाहिए, और वह धर्म युद्ध में भाग ले, क्योंकि यह उसके कर्तव्य का हिस्सा था।
- भगवान कृष्ण का तत्वज्ञान (भगवद गीता):
- भगवद गीता एक अद्भुत संवाद है जो अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण के बीच हुआ था। इस संवाद में कृष्ण ने जीवन, धर्म, भक्ति, और कर्म के बारे में गहरे सिद्धांत बताए। गीता को भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है और यह विश्वभर में बडी श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है।
- भगवान कृष्ण ने अधर्म को समाप्त करने के लिए धर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा कि “जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ।”
- रासलीला और राधा-कृष्ण का प्रेम:
- भगवान श्री कृष्ण का राधा के साथ प्रेम और उनकी रासलीला एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्रतीकात्मक कथा है। यह प्रेम एक आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक है, जो भक्तों को भगवान के साथ एकात्मता का अनुभव कराता है।
- राधा और कृष्ण का प्रेम, दुनिया के भौतिक प्रेम से परे एक दिव्य प्रेम (ब्रह्म प्रेम) को दर्शाता है। यह प्रेम ब्रह्मा और आत्मा के मिलन के रूप में देखा जाता है। कृष्ण के साथ रासलीला का पालन करना भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
- कृष्ण का धर्म और आस्थाएँ:
- भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में धर्म, सत्य, न्याय, और सद्गुणों का पालन किया। उनका जीवन एक आदर्श जीवन था, जिसमें उन्होंने सच्चाई और धर्म के लिए हमेशा संघर्ष किया।
- वह अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से संसार के प्रत्येक प्राणी को आकर्षित करते थे और उनकी उपस्थिति से हर दिल में शांति और सुकून का अनुभव होता था।
श्री कृष्ण के योगदान

- भक्ति आंदोलन:
- भगवान श्री कृष्ण का उपदेश और जीवन भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनकी भक्ति में प्रेम, समर्पण और आत्मसमर्पण की महिमा है। उनका जीवन एक आदर्श उदाहरण है कि भगवान के प्रति प्रेम ही सबसे सर्वोत्तम मार्ग है।
- कृष्ण पूजा और भक्ति:
- भारत और विश्वभर में, विशेष रूप से वृन्दावन, मथुरा, द्वारका, गोकुल, और पुरी में भगवान श्री कृष्ण की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। उनकी पूजा के विभिन्न रूप हैं: कृष्ण अष्टमी, राधा अष्टमी, जन्माष्टमी आदि।
- दर्शन और योग:
- भगवान श्री कृष्ण ने गीता में योग के कई रूपों का वर्णन किया—जैसे कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और राज योग। इन चारों योगों को उन्होंने एक साथ जोड़कर आध्यात्मिक उन्नति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया।
- धर्म की पुनर्स्थापना:
- श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में धर्म की विजय के लिए हस्तक्षेप किया और कुरुक्षेत्र के युद्ध में कुरु वंश के अधर्म को समाप्त किया। उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन को प्रेरित किया और उसे युद्ध करने की प्रेरणा दी।

निष्कर्ष
भगवान श्री कृष्ण का जीवन और उनके उपदेश न केवल धार्मिक बल्कि जीवन जीने की कला को भी सिखाते हैं। वे न केवल एक महान योद्धा, प्रेमी, और गुरु थे, बल्कि वे जीवन के हर पहलू को पूरी तरह से समझते और जीते थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत हैं। कृष्ण की भक्ति और उनके जीवन के आदर्श हर व्यक्ति को धर्म, कर्म, और भक्ति की सही दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
“जय श्री कृष्ण“